जीवन क्या है ? | मानव जीवन का रहस्य

बढ़ती उम्र, गुजरता समय, आखिर वो दिन आ ही गया जब मुझे इस सवाल को सामना करना था ” जीवन क्या है ? ” 

जीवन-क्या-हैं

मानो इसने, एक पल के लिए मुझे हिला कर रख दिया हो, जब बच्चे थे लगता था बचपन ही जीवन है। जब घर की जिम्मेदारी संभालने लायक हुए सोचा अब बस यही जीवन है

अब तो वह समय भी आ गया जब सबकुछ खत्म होने को है फिर क्यों ये सवाल मन को झंझोकने को है

जी तो लिए पूरा जीवन, फिर क्यों नहीं पता ” जीवन क्या है ? ” क्या मेरे बचपन में कमी रह गई ? क्या मैंने जिम्मेदारियों को संभालने में चुक कर दी ?

अब तो बस उस दिन की आस लगाए हैं जब सबकुछ खत्म हो फिर पूछूंगा उस बनाने वाले से आखिरी ये जीवन क्या है ?

क्या बचपन ही जीवन है ?

यदि ऐसा था तो हमें बढ़ने ही क्यों दिया, रुक जाने देते समय को जब मैं उस जननी के कोख में था। रुक जाने देते समय को जब उसने मुझे हाथों से खाना खिलाया, उन बचपन की यारों के संग,

क्यों आते हैं याद अब, मानो पलकें भी अब भीगने को है। अब तो कोई साथ भी नहीं रहा, दिल करता है काश जी लू उन लम्हों को दोबारा, कहीं ये यादें ही तो जीवन नहीं ?

यदि ऐसा था तो क्यों दिखाएं सपने साथ जीने के, क्यों रखी कुछ ख्वाहिशें अधूरी ही, लगता था ये अधूरी ख्वाहिशें ही तो जीवन जीने का सबब है

अब तो उन दुश्मनों को भी चूमने का दिल करता है जिन्होंने सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उन अजनबियों का क्या जिनसे पहचान तो नहीं हुईं लेकिन एक पहचान देकर चले गए।

लगता है बचपन ही झूठा था !

नहीं नहीं ऐसा नहीं है… शायद ये मदमस्त जवांनगी ही जीवन का सच होगा

पता ही न चला कब बड़े भी हो गए, सब कुछ भागता सा नजर आने लगा है। सांस लेने की फुर्सत मानो किसी को है ही नहीं, अब तो कुछ लोगों का बदलता रवैया भी परेशान करने लगा है।

ना जाने जीवन ने ऐसा क्या किया है एक चुभन सी काटने को दौड़ रही है, लगता है जवानी का नशा चढ़ने लगा है प्रेम राज में डूबा मस्त मगन मैं

अब तो बूढ़े होते माता-पिता भी बहू की मांग करने लगें है। कुछ समय बीता ही था कि बच्चे की किलकारी अब पूरा जीवन लगने लगा है, सब कुछ मानो बदल सा गया है।

 नए जीवन की शुरुआत हुई है 

अब तो रुकने से भी जी घबराता है, ऐसा नहीं कि मुझे फुर्सत नहीं, बस थोड़ा सा ज्यादा करने की सोच है !

बैठे-बैठे एक दिन ख्याल सा आ गया, शायद अब तो यही जीवन है। अब तो बूढ़ी मां की खासी और पिता के चश्मे में बचपन का दुलार ढूंढने की कोशिश करता हूं…

कुछ सपने थे जो पूरे ना हो सके उन्हे दिल में दबाए चलता हूं, अब तो बच्चे भी बड़े से दिखने लगे हैं पर शायद उतने नहीं हुए,

अब तो बस इन्हींसब में जीवन निकालने का मन करता है। पर अचानक वो खामोशी जैसे किसी बड़े बुजुर्ग ने साथ छोड़ दिया हो, लगता था यही जीवन है

अब तो बच्चे भी शादी के लायक दिखने लगे है, लगता है कह दूं अब पहले जैसी ताकत नहीं रही, अब तो चलने में भी लाठी की जरूरत पड़ने लगी है।

अब तो नाती – पोतों में ही बचपन देखने लगा हूं, शायद अब यही जीवन जीने लगा हूं

ना जाने कैसे धीरे धीरे उम्र का अहसास होने लगा है, जब पलट कर देखता हूं बीते जीवन को, सब कुछ तो देख लिया फिर क्यों अधूरा सा लगने लगता है।

लो अबतो वो समय भी दिखने लगा है, जो भी है सब अधूरा सा लगने लगा है, कहीं पूछ ना डालू खुद से जो भी जिया हूं क्या यही जीवन जिया हूं

क्या यही जीवन है ?

मित्रों जीवन क्या है इसे चंद शब्दों में बयां करना शायद ही मुमकिन हो सकेगा। सबके लिए जीवन के मायने अलग है सबका नजरिया भी अलग है।

कुछ कहते जीवन एक खेल है, कुछ कहते जीने का नाम ही जीवन है। दोस्तों पूरी जिंदगी बीत जाती है पर असल में जीवन क्या हैं ? कोई नहीं जान पाता, 

परेशानियां तो सभी के जीवन में आती है चाहे बात ईशा मसीह की करें या अयोध्या के राम की, 

शादी के बाद वनवास, पत्नी का अपहरण तथा पत्नी और बच्चों से विलाप, क्या किसी के लिए इतना सब सह पाना असान होता है।

लेकिन फिर भी उन्होंने अपने आपको कमजोर पड़ने नहीं दिया और अपने कर्तव्य का पालन किये, इससे हम सीख सकते हैं

जीवन जीने के लिए है व्यर्थ में बीते कल और आने वाले समय की चिंता करने के लिए नहीं…

Dhyanlok के कुछ शब्द

यदि आप जीवन क्या हैं ? इसके असल अर्थ को समझना चाहते है तो स्वयं को सांसारिकता से आध्यात्मिकता की ओर बढ़ाइए, इससे आपको जीवन का अर्थ का तो पता नहीं लेकिन उस असीम शांति कि प्राप्ति होगी जिसमें जीवन का अस्तित्व छिपा है।

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Namaskar dosto! I'm the writer of this blog, I've fine knowledge on Yoga and Meditation, I like to spread positivity through my words.

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