विद्यार्थी जीवन ऐसा समय रहता है जब student अपने भविष्य की नींव रख रहा होता हैं। यह ऐसा दौर है जिसमें मेहनत, लगन और आत्मअनुशासन के बल पर success की राह बनाई जाती है। ऐसा समय भी आता है जब चुनौतियों और असफलताओं के कारण हमारा आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। ऐसे में कुछ प्रेरक प्रसंग हममें आत्मविश्वास भरकर हमारा मार्गदर्शन करते हैं और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
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“स्वामी विवेकानंद विद्यार्थी जीवन की प्रेरणा”
स्वामी विवेकानंद जी के विद्यार्थी जीवन का एक छोटा सा प्रसिद्ध प्रसंग है- एक बार जब स्वामी जी अपने गुरु “श्री रामकृष्ण परमहंस” के पास आए और उनसे पूछा… “गुरुदेव! मैं अपने जीवन में इतनी पढ़ाई और जिम्मेदारियों को कैसे संभालूं? कभी-कभी मै अपने लक्ष्य से भटक जाने के विचार से भयभीत हो जाता हूं।
तब उनके गुरु ने स्वामी विवेकानंद को पानी से भरा एक पात्र दिया। और उन्होंने कहा -“इसे अपने सिर पर रखो और नदी के किनारे तक जाओ। लेकिन ध्यान रखना, पात्र से पानी गिरना नहीं चाहिए।
स्वामी जी ने बड़ी सावधानी बरतें हुए, उस पानी से भरे पात्र को अपने सिर पर रखा और नदी किनारे तक चल दिए। जब स्वामी जी वापस लौटे तब उनके गुरु ने उनसे प्रश्न किया बताओ रास्ते में तुमने क्या कुछ देखा?”
इतने में स्वामी विवेकानंद जी ने उत्तर दिया, नहीं, गुरुदेव! मेरा पूरा ध्यान इस पात्र के पानी पर था।
रामकृष्ण परमहंस बोले – “बस यही जीवन का मंत्र है। अगर तुम अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करोगे और अपने मन को शांत रखोगे, तो कोई भी बाधा तुम्हें विचलित नहीं कर पाएगी।
शिक्षा जो इस प्रसंग से मिलती है
अगर मन शांत और स्थिर रहता है तो कठिन से कठीन कार्य भी सरलता से पूर्ण किए जा सकते हैं। जो हमको स्वामि जी के इस छोटे से प्रेरक प्रसंग सीखनी चाहिए।
द्रोणाचार्य और अर्जुन का एक छोटा सा प्रेरक प्रसंग
एक बार, द्रोणाचार्य ने अपने सभी शिष्यों को एक पेड़ पर रखे हुए पक्षी की आंख पर निशाना लगाने का आदेश दिया। जब हर एक शिष्य से पूछा गया कि उन्हें क्या दिख रहा है, तो किसी ने पक्षी का पूरा शरीर देखा, किसी ने पेड़ की शाखाएं। लेकिन जब अर्जुन से पूछा गया, तो उनका उत्तर था, “मुझे सिर्फ पक्षी की आंख दिख रही है।”
यह सुनकर द्रोणाचार्य ने कहा, “अर्जुन, तुम्हारी एकाग्रता और लक्ष्य पर ध्यान ही तुम्हें महान धनुर्धर बनाएगा।” और यही हुआ। अर्जुन ने अपनी गुरु की शिक्षा और अपने समर्पण के बल पर धनुर्विद्या में निपुणता हासिल की। अर्जुन, जो कि महान धनुर्धर बने, उनके पीछे उनके गुरु द्रोणाचार्य की शिक्षा और मार्गदर्शन का बड़ा हाथ था।
इस प्रसंग से विद्यार्थियों के लिए सीख
- गुरु का मार्गदर्शन अनमोल है:
गुरु आपके जीवन की हर चुनौती में मार्गदर्शन करते हैं। उनकी सलाह को हमेशा ध्यान में रखें। - लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें:
अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य पर पूरी एकाग्रता बनाए रखें। जब आप अपने उद्देश्य पर ध्यान देंगे, तो सफलता निश्चित है। - समर्पण और मेहनत:
गुरु की शिक्षा को आत्मसात करने के लिए मेहनत और समर्पण जरूरी है। - आत्म-अनुशासन अपनाएं:
अर्जुन का अनुशासन और गुरु की आज्ञा का पालन उनकी सफलता का सबसे बड़ा कारण था।
एक छोटी चींटी की प्रेरक सीख विद्यार्थियों के लिए
एक दिन एक बच्चा अपने दादा जी के साथ खेत में बैठा हुआ था। तभी उसने क्या देखा कि एक छोटी-सी चींटी एक बड़े से दाने को अपनी बांबी तक ले जाने के लिए कोशिश कर रही है। वह चींटी बार-बार दाना उठाती और कुछ कदम आगे चलने के बाद गिरा देती हैं। लेकिन हर बार वह फिर से कोशिश करती रहती हैं और अंत में अपने लक्ष्य तक पहुंच ही जाती है।
बच्चे ने अपने दादाजी से पूछा दादाजी!, इतनी छोटी-सी चींटी बार-बार गिरने के बाद भी क्यों हार नहीं मानती?
दादाजी मुस्कुरा कर बोलने लगते हैं – बेटा! यह चींटी हमें यह सिखाती है जीवन में असफलता मिलने के बाद भी हमें हार नहीं मानना चाहिए और लगातार प्रयास करते रहने से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। यह छोटी-सी चींटी हार नहीं मानती, तो हमें भी कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
यह सब सुनकर बालक ने भी निश्चय किया, कि वह भी अब अपने पढ़ाई और जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना डट कर करेगा, और कभी हार नहीं मानेगा।
इस प्रसंग से विद्यार्थियों के लिए सीख
हमेशा प्रयास करते रहे
सफलता और असफलता दो पहलू हैं चाहे कितनी भी बार असफलता आए, सफलता के लिए प्रयत्नशील रहना जरूरी है क्युकी प्रयास करने से ही सफलता मिलती हैं।
धैर्य और संयम बनाए रखें
हर चीज समय लगता है, एक ही दिन में सब कुछ पाने को अगर आपका भी मन ललायित हों जाता हैं। यानी आपको धैर्य और संयम बनाए रखने कि आवश्यकता है।
सकारात्मक सोच रखें
अपने मन में सकारात्मक विचारों को जगह दें। और ज्यादा से ज्यादा अच्छे विचार सुने और ऐस ही लोगों और वातावरण में खुद को शामिल करें। क्युकी जैसा सोचते हैं वैसे ही आप बन जाते हैं। आत्मविश्वास और सकारात्मकता सोच के साथ आगे बढ़ें।
कठिनाइयों को चुनौती की तरह देखे
कठिनाइयां जीवन का एक अहम पहलू हैं जीवन के अनुभव और शिक्षाएं अवसर है कुछ बेहतर और नया कर दिखाने का
थॉमस एडिसन विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा
चर्चित सांइटिस थॉमस एडिसन, जिनके बिजली बल्ब बनाने की अद्भुत खोज ने आज पूरी दुनिया को रोशन कर दिया है। उनके जीवन से हमको एक बड़ी प्रेरणा मिलती है। जब सांइटिस थॉमस एडिसन बल्ब बनाने के लिए प्रयोग कर रहे थे, तब उन्होंने लगभग 1000 से भी ज्यादा बार असफलताएं प्राप्त करी।
एक बार उनसे एक पत्रकार ने प्रश्न किया था “आप 1000 बार असफल हुए, फिर भी आपने हार क्यों नहीं मानी?
सांइटिस थॉमस एडिसन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। मैं असफल नहीं हुआ। मैंने उन 1000 ऐसे तरीको को खोजा जो काम नहीं करते थे। हर बार मैं अपनी गलतीयों से सीखता गया और अंत में सफलता प्राप्त होती हैं।
सांइटिस थॉमस एडिसन का यह जवाब सुनकर सभी पत्रकार और लोग दंग रह गए। सांइटिस थॉमस एडिसन की यह विचारधाराएं आज भी हमको यह सिख देती है, कि असफलता केवल हमें सबक सिखाती है, न कि अंत।
इस प्रसंग से विद्यार्थियों के लिए सीख
- असफलताओं को सीख में बदले
असफलताओं से भयभीत न हों, यह हमको सिखाती है कि क्या चीजे काम नहीं करती, इसे एक सबक के रूप में लें और आगे बढ़ जाएं - दृढ़ता बनाए रखें
अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हैं तो कोई भी असफलता आपके कदम नहीं रोक सकती, इसलिए लक्ष्य साध और निरंर आगे बढ़ते रहें। - सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाए
असफलताओं के बीच में छुपे मौके को पहचानें, उनका सही सदुपयोग करने के बारे में सोचना प्रारंभ करें। अपने कीमती समय का सही उपयोग करें। - हार नहीं मानें
जब तक आप प्रयास करना बंद नहीं करते देते हैं। तब तक आप वास्तव में असफल नहीं हो सकते हैं।
मकड़ी का जाल विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा
एक बार की बात है एक राजा युद्ध में हार जाता हैं और अपने राज्य से भागकर जंगल में छिपने आ जाता हैं वह पूरी तरह से हताश और निराश हो चुका था। एक दिन जब राजा अपनी गुफा में बैठा हुआ था। उसने देखा, एक मकड़ी अपनी जाल बनाने की कोशिश कर रही थी
मकड़ी बार-बार अपना जाल बुनती, लेकिन हर बार उसका जाल टूट जाता था। लेकिन वह हार मानने के बजाय फिर से कोशिश करती, और आखिरकार मकड़ी ने अपना जाल बना ही लिया।
इसे देखकर राजा को भी ऐहसास हुआ और राजा ने सोचा “अगर एक छोटी-सी मकड़ी बार-बार असफल होने के बावजूद हार नहीं मान सकती, तो मैं कैसे हार मान सकता हूं?”
और इसी प्रेरणा और नए आत्मविश्वास से राजा ने नई सेना इकट्ठा करी और एक बार फिर युद्ध लड़ा। और इस बार राजा अपनी मेहनत और लगन से जीत हासिल कर लिया।
इस प्रसंग से विद्यार्थियों के लिए सीख
- हार से सीखें और आगे बढ़ते रहें
जीवन में जब जब असफलता आती है तो हार मानने के बजाय हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और दोबारा कोशिश करके देखना चाहिए। - पुनः प्रयास करें:
सफलता उन्हीं को मिलती है जो दृढ़ निश्चय के साथ लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहते हैं और कभी पराजय स्वीकार नहीं करते - धैर्य और संयम रखना जाने
हर काम अपना नियत समय लेता है, अपने सपनों को पूरा करने के लिए धैर्य और संयम बनाए रखें। - प्रेरणा हर जगह से लें:
छोटी-छोटी चीजों से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में बड़े बदलाव लाएं।
विद्यार्थियों के लिए संदेश
विद्यार्थी जीवन में चुनौतियां और असफलताएं तो आएंगी ही, लेकिन यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि कितनी दृढ़ता और प्रयास से आप उन्हें पार करते हैं।
Dhyanlok के कुछ शब्द
vidhyarthiyon ke liye prerana prasang याद रखें, असफलता केवल एक पड़ाव है, मंजिल नहीं। अगर आप मेहनत और लगन से आगे बढ़ते रहेंगे, तो सफलता आपके कदम जरूर चूमेगी।