योगसूत्रों में उल्लेखित किया गया है कैसे ध्यान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त किया जा सकता हैं। जब आप अष्टांग योग का अवसरन करने लगते हैं आप ध्यान की उच्चतम अवस्था जिसे समाधि कहते हैं वहां पहुंच पाते हैं। आप स्वयं से आध्यात्मिक रूप से जुड़ पाते हैं
महर्षि पतंजलि ने योगसूत्रों के माध्यम से ध्यान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करने के लिए एक सुव्यवस्थित मार्ग दिया हैं जिसे हम राजयोग कहते हैं। ये विधिवत निर्देश जो मन को उसके आंतरिक “मैं” का भान कराता है।
योगसूत्रों में महर्षि पतंजलि योजनाबद्ध रूप से निर्देश देते हैं जिसे अष्टांगयोग का नाम दिया गया है
Table of Contents
समाधि क्या है? समाधि तक कैसे पहुंचे | समाधि का अर्थ | Maha samadhi | what is samadhi hindi
महर्षि पतंजलि के अनुसार समाधि ध्यान की उस अवस्था को कहते हैं जहां आप पूर्ण रुप से ध्यान में डूबे होते हैं इस अवस्था को निरंतर धारणा और ध्यानाभ्यास के बाद प्राप्त किया जाता है। जब आप उस आंतरिक “मैं” को जान लेते हैं बिना मन से बाधित हुए, इसे ध्यान से प्राप्त हुआ माने
समाधि एकाग्र मन की एक सरल रेखा है इसे आप सामान्य लाइट और लेजर बीम से निकलने वाले प्रकाश से तुलना कर सकते हैं। जहां साधक की एकाग्रता, ध्यानाभ्यास व ध्यान के लिए प्रयुक्त साधन तीनों एक केंद्र पर आ गए होते हैं। जिसे आप साक्षात्कार कर रहे होते हैं।
समाधि में मन के पास अपार क्षमता होती है जो सामान्य मन के पास नहीं होती, यही योग के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाने का साधन बनाता है। आत्मा का परमात्मा से मिलन
समाधि तक कैसे पहुंचे | समाधि के लक्षण | समाधि मंत्र | Maha samadhi
वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की सभी निर्जीव और सजीव वस्तुओं में जागरूकता है तथा वेदों में ही बताया गया हैं केवल मानवो के पास ही स्वयं के प्रति सजग बन पाने की सार्थक शक्ति है। उदाहरण के लिए एक पशु यह कभी नहीं पूछता वह कौन है! केवल मनुष्यों को यह शक्ति प्राप्त है वे खुद के प्रति सजग हो सकते हैं और सजगता के उच्चतम से उच्चतम शिखर को प्राप्त कर सकते हैं जिसे हम समाधि कहते हैं
हालांकि, केवल प्रयास करते रहना यह निश्चित नहीं कराता आप समाधि को प्राप्त कर लेंगे, इसमें बहुत समय लग सकता हैं। एक सार्थक गुरु (गीता में कहा गया हैं “मोक्ष मूलम् गुरु कृपा” अर्थात मोक्ष का द्वार गुरु की कृपा से होकर गुजरता है) अर्थात समाधि प्राप्त करने के लिए आपको समाधि प्राप्त करने लायक भी बनना होगा।
समाधि सामान्य ज्ञान और मन से कहीं परे है जो इसे सही अर्थों में व्याखित कर पाने में भी कठिन बना देता है। इसे केवल और केवल अनुभव से समझा जा सकता है। समाधि में भी आपको बहुत से स्तरो से होते हुए आगे बढ़ना होता है
समाधि का पहला स्तर : सविकल्प समाधि | Savikalpa samadhi
समाधि के पहले स्तर में ही आपको इसकी 4 भिन्न अवस्थाओ से गुजरना होता है। सविकल्प समाधि की शुरुआती अवस्था – जहां ध्यान में व्यक्ति सभी मानसिक और शारीरिक चेतनाओं से मुक्त हो जाता है। इसे महर्षि पतंजलि बताते हैं यहां ध्यानी कुछ समय के लिए अपनी सभी चेतना से मुक्त हो गया होता है इस अवस्था में समय और ब्रह्मांड दोनों भिन्न लगने लगते हैं कुछ मिनट कुछ घंटे के समान या जैसे आप किसी अलग ही दुनिया में आ गए हैं। आप देखेंगे सब स्वत: होने लगा है आपको कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं, आप शांत – चीत हैं। आपके अंदर की ऊर्जा भी स्वत: कार्य कर रही है।
हालांकि, यह पूर्णतः स्थाई नहीं है पुनः आपको अपनी सामान्य चेतना में लौटना होता है। जैसे जैसे आप इस शांत चित्त अवस्था को सोते, जागते, चलते महसूस करने लगते हैं पतंजलि सविकल्प समाधि के चार स्तरों को बताते हैं जो संभव हैं –
वितर्कानुगम समाधि
यहां मन पूर्णतः भौतिक रूप में केंद्रित होता है जहां आप उन वस्तुओं को देखते, उनके बारे में जानते – समझते हैं। इस अवस्था में आप केवल बाहरी रूप से उस वस्तु को समझ रहे होते हैं उसके बाहरी रूप का आपको पूर्ण ज्ञान हो जाता है
विचारानुगम समाधि
यहां मन वस्तु के बाहरी स्वरूप से हटकर सूक्ष्म रूप को देखने लगता है आतंरिक गुण जैसे – सुंदरता, रंग, स्वाद, आवाज इत्यादि जिससे उसके बारे में आप समझने लगते हैं।
आंनदानुगम समाधि
यहां मन वस्तु की भौतिकता को नकारते हुए बौद्धिकता के परे चले जाता है। यहां ना कोई सोच – विचार है ना किसी प्रकार की प्रतिक्रिया, केवल शांत स्थिर मन। यह शुद्ध (सात्विक) मन केवल अपने होने का आभास कर सकता है। यहां एकाग्रता पूर्ण आंतरिक केंद्र पर होती है अथवा केवल मन में, इसे “परमानंद” या समाधि जिसमें गहरी शांति भरी हुई होती हैं
अस्मितानुगम समाधि
अब तो परमानंद की अनुभूति भी चली गई फिर भी आप हैं, केवल सात्विक (शुद्ध) अहम, केवल “मैं”, आप यहां मौजूद है और किसी के लिए सजग नहीं है। यही “मैं” अहम का पूर्ण शुद्ध रूप है। ना कोई डर, ना कोई इच्छा; इस समाधि की अवस्था को शंकरा ट्रेडिशन में ब्रह्मणीय सजगता से जोड़ा जाता हैं। जहां “मैं” पूर्णता सचेत होता हैं। यहां आप भौतिक संसार से पूरी तरह अलग हो चुके हैं केवल स्वयं के प्रति सजग है।
सविकल्प समाधि में संस्कार (सूक्ष्म क्षमताओं और पूर्व क्रियाकलाप जो जीवन और इच्छाओं का निर्धारण करते हैं) वह अभी भी अछूते नहीं हैं बल्कि बीज रूप में जीवित है। इस समाधि में एकाग्र मन कुछ योगिक शक्तियों को प्राप्त कर लेता है जिसे सिद्धि कहते हैं।
हालांकि, क्योंकि अभी भी अहम की भावना जीवित है आपको सावधानी पूर्वक इन शक्तियों का प्रयोग करना होगा। अगर अच्छाई के लिए आप इनका प्रयोग करते हैं तो यह मानवता के विकास में सहायता करेगा, अगर आप इसे अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए प्रयोग में लाते हैं तो दूसरों को क्षति पहुंचा सकते हैं और अपने आध्यात्मिक विकास पर भी रोक लगा बैठेंगे।
समाधि का दूसरा स्तर : निर्विकल्प समाधि
निर्विकल्प समाधि सविकल्प समाधि से भी उच्चतम अवस्था है जहां अहम और संस्कार पूर्णत: अलग हो गए हैं केवल पूर्ण सजगता बची है। पतंजलि कहते हैं भौतिक संसार एक परछाई के समान बन गई है जिससे आप पूरी तरह मुक्त हैं निर्विकल्प समाधि में मन नहीं होता यहां केवल अनंत शांति और परमानंद हैं। यहां प्रकृति का लय भी बंद हो गया होता है आत्मा और परमात्मा एक हो चुके होते हैं आप स्वयं परमानंद में तब्दील हो गए होते हैं।
निर्विकल्प समाधि में पहली चीज जो आप महसूस करते हैं आपका हृदय ब्रह्मांड से भी बड़ा हो गया है संपूर्ण ब्रह्मांड आपके फैले हृदय में मात्र एक छोटे बिंदु के समान लगने लगा है यहां केवल परमानंद है आप न केवल परमानंद को अनुभव कर रहे हैं बल्कि खुद परमानंद बन गए हैं
यह समाधि शंकरा ट्रेडिशन में दर्शाए परमज्ञान के समान है। संपूर्ण संसार के प्रति निराश्रित गहरे प्रेम की भावना, सब में परमात्मा को देख पाना जैसे आप एक अद्भुत दुनिया में प्रवेश कर गए हैं, आप ऋतंभरा प्रज्ञा का अनुभव करते हैं जहां आपके विचार स्वत: सत्य में निरूपित होने लगे हैं। भूत और भविष्य पूर्णत: वर्तमान में आ गए हैं। सब कुछ अभी है। सब कुछ यहीं है। समय और ब्रह्मांड से आप ऊपर आ चुके हैं। यह परमानंद की अवस्था कुछ समय से लेकर कुछ दिनों तक रहती है शुरुआत में इस अवस्था से वापस लौटने की इच्छा नहीं रहती और ऐसा कहा जाता है यदि कोई 21 दिन इस अवस्था में रहे तो संभवत आत्मा शरीर से परमात्मा के लिए निकल जाती है। हालांकि, निरंतर अभ्यास से आप निर्विकल्प समाधि से बाहर आकर पूरी तरह सामान्य जीवन जीने लगते हैं।
दोनों सविकल्प और निर्विकल्प समाधि को अस्थाई अवस्था माना जाता है जहां आप केवल समाधि को पूर्णत: अनुभव कर सकते हैं सामान्य जीवन से निकलकर, क्योंकि महान योगियों को भी ध्यान करने के लिए आंखों को बंद करना होता है। हालांकि, योगियों की सामान्य जीवन वैसे नहीं जैसे सामान्य मनुष्य अनुभव करते हैं इनका जीवन असीमित क्षमताओं की धारा से टिका होता है
यह वैसे ही है मानो ब्रह्मांड के सभी प्रत्यक्ष रूप आपके शरीर के सामने वाले हिस्से को स्पर्श किए हुए हैं तथा अप्रत्यक्ष, पूर्ण सजग पिछले हिस्से को स्पर्श किए हैं। जब आप सामने को झुकते हैं तो आप इस सांसारिक
दुनिया में होते हो, लेकिन इस सांसारिक दुनिया से भी परे एक दुनिया है जो आपको संभाले हुए हैं जो आपके हर सांस में विद्यमान है। महर्षि महेश योगी इसे 200% जीवन जीने को बताते हैं।
समाधि का तीसरा स्तर : धर्ममेघा समाधि
पिछले सभी समाधियों से भी उच्चतम समाधि की अवस्था जिसे धर्ममेघा समाधि कहते है।
महर्षि पतंजलि कहते हैं इस अवस्था की जागृति तब होती है जब आपमें परमात्मा को जानने या पूर्ण सजगता को प्राप्त करने की भी इच्छा नहीं बचती। इस समाधि को प्रयासों से नहीं पाया जा सकता है यह तब प्रत्यक्ष होता हैं जब सभी प्रयास निश्चल हो गए हैं यह परम सत्य को जानने से भी बढ़कर है।
जब यौगिक शक्तियों का प्रलोभन भी कोई हानि पहुंचाने लायक नहीं रहता, ऐसा कहा जाता है तब परमज्ञान की प्राप्ति होती है यही जीवन मुक्ति है। भौतिक शरीर में रहते हुए पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति। जहां कर्म के सभी प्रभाव नष्ट हो चुके हैं तथा योगी अपने ही प्रकाश में चमकने लगता है।
ऐसा कहा जाता है इस अवस्था में योगी बिना आंख के देख सकता हैं, बिना जीभ के स्वाद ले सकता हैं, बिना कानों के सुन सकता है, बिना नाक के सूंघ सकता है, बिना त्वचा के स्पर्श कर सकता है। उसकी इच्छाएं चमत्कार के समान कार्य करने लगी होती हैं। योगी केवल इच्छा जागृति करता है और सब कुछ प्रत्यक्ष होता है।