ध्यान के चमत्कारिक अनुभव – कैसे प्राप्त करें? कुंडलिनी शक्ति कैसे जागृत करें | dhyan ke chamtkarik anubhv

गहरे ध्यान में पहुंच पाना हर साधक के लिए संभव नहीं है यह अपने आपमें अदभुत अनुभव हैं। जब आप इस मुकाम पर पहुंच जाते है तब स्वततः गहरा ध्यान लगने लगता हैं।

समस्या ये है आज लोगों को ध्यान केंद्रित करना ही नहीं आता और जो लोग ऐसा करने में सक्षम हैं, वे इसे किसी अदभुत अनुभव या चमत्कार की तरह देखते हैं। ध्यान के चमत्कारिक अनुभव

मानव शरीर अपार ऊर्जा (शक्तियों) का केंद्र है। मनुष्य रूपी स्थूल शरीर में अनगिनत शक्तियां विधमान है। साधारणत: लोग यह बात मरते दम तक नहीं जान पाते है और सारा जीवन सांसारिक सुख अर्जित करने में व्यतीत करते हैं।

कई लोग यह भी मानते है गहरे ध्यान में पहुंचने से शक्तियां मिलती है कुंडलिनी जागृत होती है। हालांकि, जब कोई गहराई से ध्यान करने में समर्थ हो जाता हैं तब अनेक ध्यान के चमत्कारिक अनुभव प्रत्यक्ष होने लगते हैं

नकारात्मक ऊर्जा (विचार) प्रभावहीन हो जाती हैं फलस्वरूप आपके अंदर दिव्य जोतिर्मय प्रकाश उत्तसर्जित होने लगता हैं

 

ध्यान के चमत्कारिक अनुभव | ध्यान से चमत्कार | dhyan ke chamtkarik anubhv | meditation experience

Dhyan ke chamtkarik anubhav

 

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ध्यान अर्थात बोध, बोध हमारी चेतना (सजगता) का एक अंग हैं। सजगता से यहां मतलब मन की निष्क्रियता है जब अवशेष मात्र मन हमारी सजगता में बाधा ना पहुचा सकें, इस स्थिति को ही ध्यान का परिकल्पित रूप कहा जाता है।

चेतना की जागृति ही ध्यान का मूल लक्ष्य है। चेतना की जागृति से मनुष्य सांसारिक जीवन तथा भौतिक शरीर से स्वयं को मुक्त कर पता है जिसे ही कुछ लोग ध्यान के चमत्कारिक अनुभव या शक्तियां कहते है।

सूक्ष्म से सूक्ष्म स्तर पर ध्यान के अनुभव होते हैं। सामान्यत: जो लोग ध्यान करते उन्हें – प्रकाश का दिखना, उड़ते हुए महसूस होना, एक नई दुनिया में पहुंचना जैसे अनुभव प्राप्त हुए है। कुछ लोगों को शारीरिक कंपन, ऊर्जा ऊपर नीचे बहना, ॐ को ध्वनि सुनाई पड़ना जैसे ध्यान के चमत्कारिक अनुभव हुए हैं।

ध्यान में परमात्मा का अनुभव

आप इस स्थूल शरीर के स्वयं मालिक है जैसा चाहे इसे प्रयोग कर सकते हैं। वेदों शास्त्रों में बताया गया है आत्मा भी परमात्मा का ही अंश हैं

ध्यान करना अथवा ध्यान के चमत्कारिक अनुभव मात्र उस नितांत सत्य का भान कराते हैं। आप स्वयं को साध पाते हैं। बाह्य व आन्तरिक जीवन की उलझनों से हटकर परम सत्य को जान पाते हैं। बताया जाता हैं इस अवस्था में साधक को सभी निर्जीव – सजीव प्राणीयों में परमात्मा का स्वरूप दिखने लगता हैं।

ध्यान में प्रकाश दिखना

अनेक साधको ने व्यक्त किया है ध्यान के दौरान उन्हें कई तरह की रौशनीयां दिखलाई पड़ती हैं। किसी को मस्तक के मध्य में ये रौशनी दिखाती हैं तो कई आंख बन्द होने पर दिव्य प्रकाश की अनुभूति होने को व्यक्त करते हैं। इन रहस्यमयी और अलौकिक प्रकाश को “तनमांत्रिक प्रकाश” कहते है।

साधकों को अलग अलग रंगों की रौशनीयां दिखलाई पड़ती हैं। ये रौशनीयां पांच तत्व “पृथ्वी”, “जल”, “अग्नि”, “वायु” और “आकाश” से सम्बंधित है।

कुछ अनुभवी साधकों का मानना हैं ध्यान में दिखने वाला नीला रंग आज्ञा चक्र और जीवात्मा का प्रतीक है तथा पीला रंग जीवात्मा का प्रकाश होता है। हालांकि, ये दिव्य प्रकाश स्थिर नहीं रहता अदृश्य भी हो जाता हैं।

ध्यान में शरीर शून्य होना

शरीर का शून्य होना भी ध्यान का अनुभव है जो शुरूआती साधक से लेकर योग्य (अनुभवी) साधक महसूस कर सकते हैं। वस्तुत: ध्यान में भौतिक क्रियाएं नहीं की जाती हैं शरीर शांत स्थिर होता है। कोई भी भौतिक क्रिया नहीं होने से स्वांसो की गति भी धीमी हो जाती हैं एक समय ऐसा आता है जब स्वांस नित्य और शरीर शून्य हो जाता हैं।

गहरे ध्यान में क्या – क्या अनुभव होता हैं?

गहरे ध्यान में साधक को प्राप्त होने वाले अनुभव

  • कुण्डलिनी जागृत होना
  • आत्मबोध
  • हल्केपन का अनुभव होना
  • बिना स्पर्श वस्तुवों का ज्ञान
  • अंगों का फड़कना
  • प्रकृति के साथ समरसता

आत्मा का ध्यान कैसे करें

ध्यान के अनुभव भिन्न भिन्न होते हैं परन्तु ध्यान की गहराई में साधक को नीला और पीले रंग का प्रकाश दिखलाई देना (दोनों भोंहो के बीच) ध्यान में दिखलाई देने वाला यह प्रकाश जीवात्मा का होता है।

नीले प्रकाश के अन्दर पीला रंग जीवात्मा का प्रकाश होता है। हालांकि, ये दिव्य प्रकाश स्थिर नहीं रहता अदृश्य भी हो जाता हैं।

 रात्रि में ध्यान करें

ध्यान करने का निश्चित समय या दिन नहीं होता, इसका मतलब आप रात्रि में भी ध्यान कर सकते हैं। महान योगी – संत रात्रि में भी ध्यानमग्न होकर बैठते हैं।

यदि आप आध्यात्मिक विकास के लिए ध्यनाभ्यास करते है तो एक योग्य गुरु के सानिध्य में ही ध्यान करें।

ध्यान और कुण्डलिनी शक्ति

कुण्डलिनी ऊर्जा को आध्यात्मिक या प्राण ऊर्जा भी कहा जाता हैं इसे मेरुदंड के नीचे सुप्त अवस्था में कुंडली मारकर बैठें सर्प के समान दर्शाया जाता हैं।

कुण्डलिनी योग अभ्यास से कुण्डलिनी ऊर्जा को ऊपर उठाया जाता हैं। जहां ये ईड़ा, पिंगल और सुषुम्ना नाड़ी के साथ छ: चक्रों से होते हुए सहस्त्रार्थ को भेदती है और ब्रह्मरंद्र में समाप्त होती हैं।

कुण्डलिनी योग विभिन्न क्रियाओं और ध्यानाभ्यास से शरीर, मन और मस्तिष्क को कुण्डलिनी ऊर्जा को धारण करने योग्य सक्षम बनाया जाता हैं। जिसमें कठोर आसन, योगिक बंध, प्राणायाम, मंत्र और तंत्र विद्या के प्रयोग से कुण्डलिनी ऊर्जा को ऊपर उठाया जाता हैं

कुण्डलिनी योग में नाड़ीयों का अधिक महत्व होता हैं क्योंकी इन्हीं नाड़ीयों के रास्ते प्राण ऊर्जा पूरे शरीर में प्रवाहित होती है। ये नाड़ीयां शरीर के विभिन्न ऊर्जा केंद्रो (चक्रों) में आकर मिलती हैं

मानव शरीर में कुल 114 ऊर्जा केंद्र “चक्र” होते हैं। इन चक्रों के माध्यम से ही पूरे शरीर में ऊर्जा प्रवाह होती है। इन 114 चक्रों में दो चक्र शरीर के बाहर होते है अर्थात 112 चक्र है। जिनमें सात चक्रों को विषय माना जाता है। ध्यान और योग के कड़े अभ्यास से कुण्डलिनी ऊर्जा सातों चक्रों से होते हुए ब्रह्मरंद्र में समाप्त होती हैं।

ये सात चक्र हैं –

मूलाधार चक्र

मूलाधार चक्र मनुष्य शरीर के मूल में निवास करता है। 4 पंखुड़ी वालें इस चक्र का स्थान मेरुदंड में सबसे नीचे अर्थात निंब में स्थित होता है।

मूलाधार चक्र का बीज मंत्र ” लं ” है। इसका उच्चारण आप कुछ इस प्रकार कर सकते है।

ल + अ + म् = लं

इस चक्र को लाल रंग से संबोधित किया जाता है। जब यह चक्र पूर्ण रूप से कार्यरत हो जाता है। तब मनुष्य में स्थिरता, आत्म सुरक्षा बढ़ने लगती है। तथा यहीं से हमारी आध्यात्मिकता का विकास शुरू होता है। इस चक्र को जगाने के लिए कड़े योगाभ्यास की जरूरत होती है।

स्वाधिष्ठान चक्र

आध्यात्मिकता के विकास में दूसरा केंद्र स्वाधिष्ठान रहता है। 6 पंखुड़ी वाले चक्र का मूल स्थान मनुष्य शरीर के जननांगों के पास स्तिथ होता है।

स्वाधिष्ठान चक्र का बीज मंत्र ” वं ” है। इसका उ्चारण आप इस तरह करे

व + अ + म् = वं

इस चक्र को नारंगी रंग से संबोधित किया जाता है। कुछ योगी बताते है जब मूलाधार से कुंडलिनी ऊर्जा स्वाधिष्ठान तक आती है, यहां आने के पश्चात कुंडलिनी शक्ति कुछ समय के लिए निष्क्रिय होकर वापस मूलाधार की ओर मुड़ जाती है।

मनीपुरा चक्र

आध्यात्मिक विकास में तीसरा केंद्र मनीपूरा रहता है। जो आपनी अग्नि शक्ति के लिए प्रचलित है। 10 पंखुड़ी वाले चक्र का मूल स्थान मेरुदंड में नाभि के स्तर में रहता है

मनीपुरा चक्र का बीज मंत्र ” रं ” है। इसका उच्चारण इस प्रकार करें

र + अ + म् = रं

इस चक्र को पीले रंग से संबोधित किया जाता है। जब यह पूर्ण रुप से कार्यरत हो जाता है। तब मनुष्य ऊर्जावान और स्वयं को स्थिर महसूस करता है। यह शरीर में प्राण शक्ति का संचार करता है।

अनाहता चक्र

अध्यात्मिकता के विकास में चौथा केंद्र अनाहता चक्र रहता है। 12 पंखुड़ी वाले इस चक्र का मूल स्थान मेरुदंड में ह्रदय के स्तर में रहता है।

अनाहता चक्र का बीज मंत्र ” यं ” है। इसका उच्चारण इस प्रकार करें

य + अ + म् = यं

इस चक्र को हरे रंग से संबोधित किया जाता है। जब यह चक्र पूर्णतः कार्यरत हो जाता है, यह मनुष्य में प्रेम, दया, सहानुभूति जैसे गुणों का विकास करता है। अनाहता चक्र डोर के समान उच्च स्तर के तीन चक्रों को निम्न तीन चक्रों से जोड़ने का कार्य करता है।

विशुद्धि चक्र

अध्यात्मिकता के विकास में पांचवा केंद्र विशुद्धि चक्र रहता है 16 पंखुड़ी वाला यह चक्र मेरुदंड में गले के स्तर में स्थित रहता है

विशुद्धि चक्र का बीज मंत्र ” हं ” है। इसका उच्चारण इस प्रकार करें

ह + अ + म् = हं

इस चक्र को बैंगनी रंग से संबोधित किया जाता है। जब यह चक्र पूर्णतः कार्यरत हो जाता है तब विचारों में शुद्धता, वक्तव्य शक्ती का विकास, स्वयं को प्रसारित करने की क्षमता बढ़ती है।

अंजना (आज्ञा) चक्र

आध्यात्मिकता के विकास में छठवां चक्र अंजना चक्र रहता है। 2 पंखुड़ी वाले इस चक्र का मूल स्थान दोनों भोंहो की मध्य में स्थित रहता है।

अंजना अर्थात् त्रिनेत्र कहे जाने वाले चक्र का बीज मंत्र ॐ है इसका उ्चारण इस प्रकार करें

अ + ओ + म् = ॐ

इस चक्र को सफेद रंग से संबोधित किया जाता है। जब यह पूर्णतः कार्यरत हो जाता है तब मनुष्य आध्यात्मिकता की एक अहम सीढ़ी पार कर लेता है। इसे आध्यात्मिकता और सांसारिकता कि दीवार भी कहा जाता है। यही हमारे शरीर की तीन प्रमुख नाडीयां – ईढा, पिंगला और सुषुम्ना का मिलन होता है।

सहस्त्रार्थ चक्र

सहस्त्रार्थ चक्र जिसे ब्रह्मरंध्र भी कहा जाता है। 1000 पंखुड़ियों वाला यह चक्र मेरुदंड में सबसे ऊपर स्थित होता है।

शाहस्त्रार्थ चक्र का बीज मंत्र ” ॐ ” है। इसका उ्चारण इस प्रकार करें

अ + ओ + म् = ॐ

यह चक्र अनेकों रंगों से शुशोभित रहता है। जब यह पूर्णत: कार्यरत अर्थात मूलाधार से कुण्डलिनी ऊर्जा शाहस्त्रार्थ में पहुंचता है, तब एक विस्फोट होता, जिसके बाद मनुष्य स्वयं के प्रति निहित नहीं रहता। वह सभी संसारिक बंधनों से मुक्त होकर, परमात्मा की खोज में निकल जाता हैं।

 

Dhyanlok के कुछ शब्द

Dhyan ke chamtkarik anubhv प्राप्ति के लिए आपको योगाभ्यास करने की अवश्यकता है। तभी आप ध्यान के चमत्कारिक अनुभव प्राप्त कर पाएंगे।

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Namaskar dosto! I'm the writer of this blog, I've fine knowledge on Yoga and Meditation, I like to spread positivity through my words.

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