भ्रामरी प्राणायाम में स्वांस छोड़ते समय ऐसा प्रतीत होता, जैसे मधुमक्खी की ध्वनि का गुंजन किया जा रहा हैं। इस प्राणायाम से व्यक्ति का मन शांत और स्थिर हो जाता है चिंता मुक्त होने के लिए यह सबसे अच्छा विकल्प हैं।
भ्रमरी नाम इसे भारत में पाए जाने वाले बढ़ई मधुमक्खि के प्रजाति से मिला है। अभ्यास के दौरान जो ध्वनि उत्पन्न होती है वह बढ़ई मधुमक्खियों के समान होती है…
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भ्रामरी प्राणायाम क्या है what is bharmari pranayam
संस्कृत शब्द “भ्रामरी” जिसका अर्थ मधुमक्खी होता है इस प्राणायाम के दौरान कंठो के पृष्ठ भाग से उत्पन्न ध्वनि, मधुमक्खी के स्वर से मिलती है इसलिए इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते हैं।
मधुमक्खीयों से उत्पन्न ध्वनि तरंगे, मानव मन को शांति प्रदान करने वाले होते हैं। यह मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र को भी आराम पहुंचाते हैं तथा लाभ पूरे शरीर को मिलते हैं…
इस प्राणायाम का अभ्यास मन शांत और स्थिर बनाता है तथा उत्पन्न होने वाली भावनाए – क्रोध, चिंता, निराशा आदि से मुक्त करता है….
भ्रामरी प्राणायाम का महत्व
इस प्राणायाम का अभ्यास हमेशा योगासनों के अंत में किया जाना चाहिए। तात्पर्य – दूसरे योगासन अथवा प्राणायामों की तरह इसका अभ्यास शुरुआत में ना करके सबसे आखिर में किया जाना उचित रहता हैं।
क्योंकि ये शरीर, मन, मस्तिष्क और पूरे तंत्रिका तंत्र को शांत करता हैं इसलिए कठोर आसनों के पश्चात उत्पन्न थकान से राहत पहुंचाता है।
भ्रामरी प्राणायाम आप अलग-अलग प्रकार से कर सकते हैं…
भ्रामरी प्राणायाम के प्रकार
हमेशा प्राणायाम का अभ्यास धैर्य पूर्वक करें, आवाज का गुंजन धीरे-धीरे करें, अर्थात ज्यादा जोर न लगाएं…
चेहरे की मांसपेशियां ढीली रखें, जबड़े हल्के जुड़े तथा रिलैक्स एवम भंवरे के समान आवाज का गुंजन स्वांस बाहर निकालते समय करें।
स्वांस बाहर निकल जाने के पश्चात समान्य मुद्रा में आए तथा पुनः प्रयास करें…
बेसिक भ्रामरी प्राणायाम
आराम से बैठे, आंखें बंद, सामान्य श्वास प्रवास करें तथा मन की दशा देखें। जब तैयार हो जाए, गहरी स्वांस भरें तथा सांस छोड़ते समय हल्की धीमी आवाज में गुंजन करें।
देखे कैसे ध्वनि तरंगे, जीभ, दांत, गालो में कंपन पैदा कर रही है। महसूस करें किस प्रकार आवाज पूरे मस्तिष्क में गूंज रही है। इस अभ्यास की 6 आवृति करें। पश्चात सामान्य अवस्था में आजाए।
साइलेंट भ्रामरी प्राणायाम
एक बार फिर शांत बैठे, आंखें बंद, साइलेंट भ्रामरी प्राणायाम अभ्यास के पूर्व भ्रामरी प्राणायाम की 6 आवृत्ति पूर्ण कर ले जिसके पश्चात ही साइलेंट भ्रामरी का अभ्यास करें…
यहां आपको महसूस करना होता हैं बाहर जाती स्वांसो के साथ किस प्रकार आवाज बिना कोई ध्वनि निकले गूंज रही है। देखे क्या सच में आप यह महसूस कर पाते हैं।
भ्रामरी प्राणायाम के साथ षणमुखि मुद्रा ( वैरिएशन- 01 )
एक तरीका जिससे भ्रामरी प्राणायाम के प्रभाव को बढ़ाया जा सकता हैं। साथ में षणमुखी मुद्रा का अभ्यास करके, भ्रामरी प्रत्याहार को प्रेरित करता है
अर्थात बाहरी चीजों से हट कर स्वयं पर ध्यान देना ( inward sense ) इसलिए कुछ सेंसेरी ऑर्गंस को ब्लॉक करके भ्रामरी प्राणायाम के प्रभाव को बढ़ाया जा सकता हैं।
इस अभ्यास में अंगूठे का प्रयोग कान को बंद करने में करें, जिसके पश्चात हल्की धीमी भ्रामरी की 6 आवृत्ति करें। तथा सामान्य अवस्था में आए
भ्रामरी प्राणायाम के साथ षणमुखि मुद्रा ( वैरिएशन- 02 )
सीधे बैठे, हाथ चेहरे पर रखें। अंगूठे से दोनों कानों को बंद करें, तर्जनी अंगुली आंखों की पलकों पर, अनामिका नाक के बगल में, मध्यामिका होठों के ऊपर, तथा छोटी अंगुली होंठो के नीचे…
अब हल्की धीमी भ्रामरी का अभ्यास 6 आवृत्ति में करें, तथा होने वाले प्रभाव को महसूस करें।
तीव्र भ्रामरी प्राणायाम
रिलैक्स हो जाए, शांति से बैठे, आंखें बंद, सामान्य स्वांस प्रवास करें। तीव्र भ्रामरी का अभ्यास करें, देखें कंपन कहां महसूस होती हैं
अधिकतर ध्वनी का कंपन सिर में महसूस होता हैं। देखे क्या तीव्र भ्रामरी मध्यम भ्रामरी से कितना प्रभावशाली महसूस होता है ?
भ्रामरी प्राणायाम के नियम
- अभ्यास हमेशा योगाभ्यास के आखिर में करें
- प्रभाव बढ़ाने हेतु षणमुखी मुद्रा अभ्यास करें
- असुविधा महसूस हो तो रोक दें
- स्वांस प्रवास का विशेष ध्यान रखें
- आवाज की गूंज महसूस करने का प्रयास करें
भ्रामरी प्राणायाम अभ्यास कब करें ?
भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास हमेशा योगासनों के अंत में किया जाना चाहिए। आखिर में इस प्राणायाम को करना सबसे उपयुक्त तरीका माना जाता हैं।
बेहतर अभ्यास के लिए
- शुरुआत समान्य स्वांस से करें
- कान्तिमान मुस्कान के साथ शांत बैठें
- भंवरे के समान आवाज का गुंजन करें
- श्वास बाहर छोड़ते हुए गुंजन को महसूस करें
भ्रामरी प्राणायाम कैसे करें
- शांत वातावरण का चुनाव करें, जहां हवा का प्रवाह साफ हो
- आंखें बंद कर सामान्य श्वास प्रवास करें तथा मन को देखें
- तर्जनी को अपने कानों पर रखे तथा कान व गाल की त्वचा के बीच एक उपास्थि है अपनी अंगुलियां रखें
- गहरी लंबी स्वांस ले, स्वांस छोड़ते हुए धीरे से उपास्थि को दबाए। आप इसे दबाए हुए रख सकती हैं। इस प्रक्रिया में भवरे के समान आवाज निकाले
- आप धीमी गति से भी आवाज निकाल सकते हैं परंतु तेज गति से आवाज ज्यादा लाभकारी और प्रभावशाली रहता है
- पुनः लंबी गहरी सांस लेकर प्रक्रिया दोहराए
शुरुआत कैसे करें
किसी ध्यान के आसन में बैठे…
आसन में बैठकर रीढ़ को सीधा कर हाथों को घुटनों पर रखें, तर्जनी को कान के अंदर डाले दोनों नाक के नथूनों से स्वास को धीरे-धीरे ॐ शब्द का उच्चारण कर, मधुर आवाज में कंठ से भवरे के समान गुंजन करें।
नाक से स्वांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़े, स्वांस पूरा बाहर निकाल देने के पश्चात भ्रमर की मधुर आवाज अपने आप बंद हो जाएगी। इस प्राणायाम को 3 से 5 बार करें।
भ्रमरी प्राणायाम के लाभ
- मन की चंचलता दूर होती
- मन एकाग्र होता
- उच्च रक्तचाप नियंत्रण होता
- ह्रदय रोगों के लिए लाभकारी
- वाणी तथा स्वर में मधुरता आती
- पेट के विकारों का शमन करता
- आत्मविश्वास बढ़ाता
- बुद्धि तीक्ष्ण होती
भ्रामरी प्राणायाम के नुकसान
ब्राह्मणी प्राणायाम के कोई नुकसान नहीं है इसे कोई भी कर सकता है। बच्चे से बूढ़े सभी, अच्छा होगा जब आप इसे योग्य प्रशिक्षक के निर्देश में सीखे। ध्यान रखें इस प्राणायाम का अभ्यास खाली पेट ही करें।
Dhyanlok के कुछ शब्द
भ्रामरी प्राणायाम कैसे करें, यह क्या है तथा भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास कब करना चाहिए ? इस लेख में आपने जाना, भ्रामरी प्राणायाम अभ्यास करना मन स्थिर रखने में बहुत उपयोगी साबित होता है।