शीतकारी प्राणायाम अभ्यास में स्वांस मुख से लिया जाता है इस अभ्यास में अंदर आने वाली हवा बाहर निष्काशित नहीं हो पाती, जीभ होंठों से सटाकर रखें। इस प्रकार अभ्यास करना मनुष्य को तेजस्वी बनता हैं।
शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास करना प्यास की तीव्रता में भी कमी लाता है हठयोग प्रधीपिका में भी इसे महत्वपूर्ण प्राणायामों में एक माना गया है।
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शीतकारी प्राणायाम क्या है | what is Shitkari pranayam in hindi
संस्कृत शब्द शीतकारी का अर्थ होता है शीत अर्थात “ठंड” कारी अर्थात “कारण बन्ना” मतलब की शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास करना शरीर में ठंडक लाता है। तथा गहरी शांति की प्राप्ति भी होती है।
अभ्यास के समय, इस प्राणायाम में “शित” ध्वनि उत्पन्न होती है शायद इसी कारण इसे शीतकारी प्राणायाम कहा जाता है।
इस प्राणायाम का अभ्यास शीतकाल में नहीं करना चाहिए तथा स्वांस हमेशा मुख से ही लेना चाहिए।
शीतकारी प्राणायाम का महत्व
योगी इस प्राणायाम का अभ्यास करते हैं जब उन्हें शरीर में शीतलता लानी हो जैसे कठोर आसनों के पश्चात उत्पन्न ऊर्जा को शांत करने में…
क्योंकि इस प्राणायाम का अभ्यास शरीर को ठंडक प्रदान करता है इसलिए इसे शीतकारी नाम दिया गया है
इसमें आपको स्वांस नासिका रंद्रो के स्थान पर मुख से लेना होता है तथा नाक से स्वास को निष्कासित करना पड़ता है।
शीतकारी प्राणायाम के प्रकार
यह प्राणायाम बेहद ही सरल है तथा इसका अभ्यास कोई भी कर सकता है आप चाहेतो इसके साथ दूसरे आसन, प्राणायाम शामिल कर इसके प्रभाव को अधिक बढ़ा सकते हैं जैसे –
शीतकारी के साथ कुंभक
शुरुआती अभ्यास स्वांस लेने तक वही रहेगा…
- सांस लेने के पश्चात अपनी क्षमता अनुसार इसे अंदर रोककर रखें, यह फेफड़े के अवशोषित करने की क्षमता का विकास करता, तथा मस्तिष्क में ठंडकता और गहरी शांति का अनुभव कराता
- स्वांस पूरी तरह बाहर को छोड़ें
- पुनः प्रक्रिया को दोहराएं
शीतकारी के साथ बंधास
कुंभक के दौरान जब आप स्वांस रोक रहे होंगे, अपनी ठुड्डी को छाती से लगाए तथा क्षमता अनुसार श्वास को रोककर रखें इसे जालंधर बंध कहते हैं।
शीतकारी प्राणायाम के नियम
वैसे तो यह बेहद ही सरल प्राणायाम विधि है किन्तु कुछ आवश्यक बातें हैं जिसका अभ्यासी को खास ख्याल रखना चाहिए जैसे –
- शीतकाल में इसका अभ्यास ना करें
- शरीर की गर्मी शांत करने में इसका अभ्यास कर सकते हैं
- वातावरण में गंदगी रहने पर ना करें
- अधिक समय सांस रोकना स्वास गर्म कर सकता, इसलिए अधिक स्वांस ना रोके
बेहतर अभ्यास के लिए
- आरामदायक आसन चुने
- वातावरण में वायु अधिक ठंडी या गर्म ना हो
- ग्रीष्म में अभ्यास बेहतर रहेगा
- स्वास मुख से लेवें
- जीप को पटल तालु से सटाकर रखें
शीतकारी प्राणायाम कब करें
शीतकारी प्राणायाम शरीर में ठंडक लाती हैं इसलिए इसका अभ्यास शरीर तापमान नियंत्रित करने अथवा ग्रीष्म के समय करना बेहतर रहता है
कैसे करें
नए योगी जो प्राणायाम अभ्यास सीख रहे हैं वे शीतकारी कुछ इस प्रकार से कर सकते हैं
- आरामदायक आसन में बैठे, पीठ सीधे, गहरी श्वास के साथ ज्ञान मुद्रा में बैठे
- हल्के हल्के ऊपर तथा निचले जबड़े को दबाए, होठों को अलग रखें, दांत हवा के संपर्क में आसानी से आ सके
- जीभ को मोडे जैसे जीभ का निचला हिस्सा ऊपर परत को छू रहा हो
- इसी अवस्था में धीमी तथा गहरी श्वास भरें, तथा पूरे पेट में हवा भरकर रोके
- अब मुंह और होठों को बंद करें और नाक से सांस छोड़ें
- यह शीतकारी की एक आवृत्ति है इसे दोहराए
शुरुआत कैसे करें
किसी भी आरामदायक आसन में सीधे बैठे , घुटने जमीन से लगा कर रखें। जीभ को पटल तालु से सटा लीजिए, दांतों को भींचकर होठों को अधिक से अधिक खुला रखे, दांतो के बीच से मुख द्वारा सांस लीजिए। होंटो को बंद कर धीरे धीरे नाक से सांस छोड़ें…!
शीतकारी प्राणायाम के लाभ
- इस प्राणायाम से रक्त की अशुद्धता दूर होती है
- उच्च रक्तचाप में पर्याप्त राहत मिलता
- मानसिक, आत्मिक तथा मांसपेशियों के तनाव दूर होता
- गहरी शांति का अनुभव होता
- इस प्राणायाम से प्यास की तीव्रता में कमी आती है
शीतकारी प्रिकॉशन और काउंटराडिक्शन
कुछ केसों में इसका अभ्यास न करें
- जिन्हें कफ, कोल्ड, अस्थमा की शिकायत हो
- जिन लोगों को लोग ब्लड प्रेशर, दिल संबंधित बीमारी हो वैसे ना करें
- कॉन्स्टिपेशन और गैस्टिक प्रॉब्लम में भी इसका अभ्यास ना करें
- सेंसेटिव टीथ होने पर भी इसका अभ्यास न करें
Dhyanlok के कुछ शब्द
शीतकारी प्राणायाम अभ्यास करना बेहद आसान है तथा इसे कोई भी आसानी से कर सकता है। Shitkari pranayam शरीक में ठंडकता लाती हैं इसलिए इसका अभ्यास शीतकाल में ना करके ग्रीष्म ऋतु में किया जाना चाहिए।