भस्त्रिका प्राणायाम शरीर में अग्नि ऊर्जा का विकास करता है यह नाभि में स्थित मणिपुरा चक्र में ऊर्जा संचालित करने में भी सहायता करता है।
क्योंकि भस्त्रिका प्राणायाम एक तृष्ण प्राणायाम प्रक्रिया है जिसमें स्वासो को तेजी से लेना तथा निष्कासित करना होता है किंतु इसके लाभ शांति प्रदान करने वाले होते हैं। खासकर यदि आप मानसिक तनाव से ग्रसित होंगे तो….
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भस्त्रिका प्राणायाम क्या है ?
हठ योगा प्रधीपिका में उल्लेखित आठ प्रमुख प्राणायामों में भस्त्रिका प्राणायाम भी एक है। भस्तत्रा अर्थात जलना जैसे दो हैंडल को साथ रगड़ने से अग्नि उत्पन्न होता है।
भस्त्रिका प्राणायाम में तेजी से सांस लेने तथा छोड़ने से आंतों और फेफड़ों के मसल्स जल्दी अंदर-बाहर होते हैं जिसे शरीर में अग्नि ऊर्जा बढ़ने लगती है।
भस्त्रिका प्राणायाम की खास बात यह है इसके अभ्यास से क्रमानुसार स्वांस लेने की आदत पड़ती है जैसे – कपालभाती में, इसलिए यह जरूरी है आप क्रम से स्वांस ले तथा छोड़े…
कम समय में तेजी से स्वास अंदर-बाहर जाने से, शरीर में हिट उत्पन्न होता है तथा पाचन जठारग्नी को भी स्टिम्युलेट करता है।
भस्त्रिका प्राणायाम का महत्व
योगी इस प्राणायाम का अभ्यास तब करते हैं जब वे कठोर योगासनो का अभ्यास करने जा रहे हो, यह शरीर में अग्नी ऊर्जा को बढ़ा देता है। इसलिए बहुत से योगी भस्त्रिका प्राणायाम को ” स्वांस की अग्नि ” भी कहते हैं। कुंडलिनी योग में यह शुरुआती स्वसन अभ्यास है।
यदि आप भस्त्रिका तेज गति से करें, 3-4 ब्रेथ पर सेकंड, पहले ही राउंड में आप उत्पन्न होने वाली गर्मी को महसूस कर सकेंगे।
भस्त्रिका प्राणायाम के प्रकार
गति को निर्धारण मानकर, भस्त्रिका प्राणायाम को तीन रूपों में बांटा जा सकता है…
तीव्र गति भस्त्रिका
इस रूप में भस्त्रिका का अभ्यास अत्यंत तीव्र होता है। इस क्रिया से उत्पन्न आवाज आसानी से सुनाई पड़ जाता है। एडवांस योगा प्रैक्टिशनर अपने स्वंसो की गति 232 ब्रेथ पर सेकंड या 3-4 ब्रेथ पर सेकंड ले जा सकते हैं।
स्वामी रामदेव बाबा के अनुसार तीव्र भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास परहेज करें, जब आपको हार्ट डिजीज, हर्निया, हाई बीपी, बैक पेन हो, यहां धीमी अथवा मध्यम गति से भस्त्रिका कर सकते हैं।
मध्यम गति भस्त्रिका
मध्यम गति से किए जाने वाले भस्त्रिका प्राणायाम में स्वांस 1 ब्रेथ / सेकंड की गति से लिया जाता है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाली आवाज भी थोड़ी धीमी रहती है। इस भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास उन लोगों के लिए बेहतर होगा जो कुछ समय से कपालभाती कर रहे हैं।
समन्वय गति भस्त्रिका
जिन्हें दिल के रोग, ब्लड प्रेशर की समस्या, अधिक उम्र हो गई है उन्हें समन्वय गति से भस्त्रिका का अभ्यास करना चाहिए। 1 ब्रेथ / 2 सेकंड गति होने के कारण इसे समन्वय गति भस्त्रिका कहा जाता है।
भस्त्रिका प्राणायाम के नियम
- मेरुदंड सीधा रखें
- आरादायक आसन में बैठें
- शरीर शिथिल रखें, कसाव न लाएं
- स्वांस लयबद्ध हो
- शारीरिक सीमाओं का ध्यान रखें
- बलपूर्वक स्वसन ना करें
भस्त्रिका का अभ्यास कब करें
खाली पेट भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करना सर्वश्रेष्ठ रहता हैं। भोजन के पश्चात अभ्यास में 3 से 4 घंटों का समय रखें, सुबह अथवा शाम के समय अभ्यास उचित रहता हैं।
यदि आप कठोर आसनों का अभ्यास करने वाले हैं तैयारी के लिए आप भस्त्रिका का अभ्यास कर सकते हैं। यह शरीर को द्रीण आसनों के अभ्यास के लिए तैयार करेगा। इसके साथ दूसरे प्राणायाम जैसे कपालभाती भी कर सकते हैं।
भस्त्रिका के लाभ
- फेफड़े मजबूत बनाता
- स्वांस सम्बंधी रोग दूर करता
- क्षय रोगों में लाभकारी
- पाचन शक्ति बढ़ाता
- मन स्थिर करता
- शांति प्रदान करता
- डायबिटीज में इंसुलिन हार्मोन सीक्रेट करता
- मणिपुरा चक्र में ऊर्जा प्रवाहित करता
- वजन कम करने में सहायक
- मानसिक तनाव कम करता
- नाड़ी शोधन
भस्त्रिका के नुकसान | प्रिकॉशन एंड कंट्राडिक्शन
- प्रेगनेंसी में अभ्यास हानिकारक
- शुरुआत में तथा हाई ब्लड प्रेशर वालों को समन्वय गति से अभ्यास करना चाहिए
- गर्मी में भस्त्रिका का अभ्यास अधिक ना करें, तापमान बढ़ जाएगा
- चक्कर या बेहोशी की अवस्था में अभ्यास रोक दे
- खाने के तुरंत बाद अभ्यास ना करें
- बच्चे इसे ना करें अथवा धीमी गति से करें
- बलपूर्वक स्वांस ना ले
- कुशल निर्देशक की सलाह में करें
कैसे करें भस्त्रिका प्राणायाम
इस प्राणायाम में फेफड़ों का उपयोग लोहार की धौकनी की तरह होता है।
अभ्यास के लिए ध्यान के किसी भी सुखद आसन में बैठे, मेरुदंड सीधा रखें, नेत्रों को बंद ही रखें, तथा शरीर शिथिल कर दे…
बेहतर तरीके से अभ्यास करें
- ध्यान दे, शरीर अत्याधिक तो नहीं हिला रहे, केवल पेट और छाती हरकत में रहे
- पहली आवृति के बाद, ध्यान दें, स्पाइन सीधी हैं या नहीं, अभ्यास में अक्सर लोग अपना संतुलन खो देते हैं।
- शुरुआत में हल्का दर्द, छाती और कॉलर बोन में महसूस होगी
भस्त्रिका प्राणायाम विधि
- आरामदायक आसन में बैठे, आंखें बंद
- एक गहरी स्वांस ले, स्वांस लेते समय पेट और छाती फुलाए
- भस्त्रिका के लिए तेजी से स्वांस लेना तथा छोड़ना प्रारंभ करें, 1 ब्रेथ / सेकंड, आवाज भी आने लगेगी
- 10 वे स्वांस के बाद गहरी स्वांस ले तथा धीरे से स्वांस निकाले
- कुछ सेकेंड नॉर्मल स्वांस ले फिर दूसरा राउंड करें
- तीसरे राउंड के बाद गहरी स्वांस ले, तथा इसे पूरा करें
इसे प्रातः काल अथवा सायकाल में करें, यह हठयोग प्रधीपिका के अनुसार ट्रेडिशनल भस्त्रिका का अभ्यास यही है…
भस्त्रिका प्राणायाम शुरुआत कैसे करें
प्रथम अवस्था
बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखे, तथा हाथो को मस्तक पर भूमध्य के पास रखें। प्रथम एवं द्वितीय उंगली को कपाल पर रखें, अंगूठा दाएं नथुने के बाजू में तथा तीसरे अंगुली को बाएं नथुने के बगल में रखें। अंगूठे से दाहिने नथुने को बंद करें बाय नथुने से जल्दी-जल्दी 20 बार सांस लेवें…
यह क्रिया उधर के फूलने एवं पिचकने के साथ जल्दी-जल्दी लयबद्ध हो, फिर एक पूरक कर दोनों नथुनों को अंगूठे एवं तृतीय अंगुली से बंद कर ले, जालंधर एवं मूलबंध या कोई एक का अभ्यास कर क्षमता अनुसार रुककर बंधो को शिथिल कर रेचक करें, दाहिनी ओर से यही क्रिया दोहराए, यह एक आवृति है। इस प्रकार तीन आवृति करें
द्वितीय अवस्था
पूर्व स्थिति अनुसार बैठकर दोनों हाथों को दोनों घुटनों पर रखें, अब दोनों नासिका छिद्रों से एक साथ 20 बार लयबद्ध श्वसन करें, दीर्घ पूरक कर स्वास रोकिए, जालंधर एवं मूलबंध या कोई एक का अभ्यास करें क्षमता अनुसार समय पश्चात बंधो को शिथिल करें, इसकी भी तीन आवृति करें
प्राणायाम अभ्यास सुबह या शाम
दोनों ही बेहतर है। लेकिन प्रातः काल ब्रमहवेला में प्राणायाम करना अधिक लाभकारी माना जाता हैं आप अपनी व्यवस्था के अनुसार इसका अभ्यास करें
क्या भस्त्रिका प्राणायाम हानिकारक है
नहीं… लेकिन कुछ अवस्था में अथवा कुछ लोगों को भस्त्रिका का अभ्यास करने से बचना चाहिए जैसे हर्निया और बीपी के मरीजों को
भस्त्रिका प्राणायाम के पहले तथा बाद वाले प्राणायाम
कठोर आसनों में जाने से पहले, भस्त्रिका प्राणायाम कर सकते है। इसके साथ आप अन्य प्राणायाम जैसे कपालभाती, का अभ्यास भी कर सकते है
Dhyanlok के कुछ शब्द
भस्त्रिका प्राणायाम कैसे करें : भस्त्रिका का अभ्यास करना शरीर में अग्नि ऊर्जा को संसचलित करता है। तथा मणिपुर चक्र में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।