ध्यानयोग – ध्यान और योग में क्या अंतर है | Dhyan yoga in Hindi

चलिए…, एक छोटा सा शोध करते हैं!
एक लंबी गहरी सांस ले… कुछ देर रोके
अब स्वांस छोड़ें!
अभी ये भले आपको मूर्खतापूर्ण लग रहा हो या फिर आपके समझ में ही ना आया हो….!
इसीलिए हममें से अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक इसे पूर्ण नहीं किया, बावजूद इसके, इस स्वांस – प्रवास के शोध में केवल कुछ सेकेंड का समय लगता।
शायद आप भी ये मानते होंगे, छोटा-मोटा एक्सरसाइज, फिर चाहें वह सांस लेने और छोड़ने का ही क्यों ना हो, मात्र समय की बर्बादी है शायद इससे कोई लाभ भी ना हो
वैसे यदि आप कोई एक्सरसाइज करते आ हों, शायद आपको पता होगा इन सभी में एक चीज बहुत महत्वशील होता है वह हैं “स्वांस प्रवास पर केंद्रता”
महत्वपूर्ण बात ये है…!
योगा और मेडिटेशन (ध्यानयोग) तो केवल शरीर रूपी है स्वांसो का गमन इस शरीर में प्राण का संचार करती हैं। अर्थात आप ध्यानयोग से तब तक कुछ हासिल नहीं कर सकते जब तक इसमें प्राणवायु का संशय ना हो रहा हो, स्वांसो का गमन ही इसे उस योग्य बनाता है।
चलिए मैं आपसे पूछता हूं योग और मेडिटेशन (ध्यानयोग) अपने में पूरी तरह संपन्न है, बावजूद इसके, इन्हें साथ में ही क्यों रखा जाता है?
कहीं योग ही तो मेडिटेशन नहीं…!

ध्यान और योग में अंतर (ध्यानयोग) | The difference between yoga and meditation (dhyanyoga)

वास्तविकता तो यह है योग और मेडिटेशन एक दूसरे से भिन्न नहीं अपितु एक दूसरे के अंग है। महर्षि पतंजलि अपने अष्टांग योग सूत्र में बताते हैं ध्यान अर्थात (मेडिटेशन) “अष्टांगयोग” में सातवां अंग है वही “हठयोग” को आसन और प्राणायाम के रूप में अभ्यास किया जाता हैं
महर्षि पतंजलि ने सामान्य लोगों की सुविधा के लिए इसे एक रुप दिया है
यदि अभी आपने गौर किया हो, आपने अभी दो नई चीजों के बारे में पढ़ा – हठयोग और अष्टांग योग, चलिए जानते हैं ये क्या है व ध्यानयोग में इनका क्या महत्व है?

हठयोग क्या है – hath yoga kya hai

योग का अर्थ होता हैं – “जोड़ना”, “मिलना”, या “सम्मिलित होना” ना की वह जिसे आप चटाई या मेट पर करते हैं। हठयोग का शाब्दिक अर्थ होता है शारीरिक और मानसिक रूप से क्रमानुसार आसन अभ्यास से प्राण ऊर्जा से जुड़ना
योग के प्रकार भी अनेकों होते हैं उदाहरण के लिए – राज योग, भक्ति योग, कर्म योग, ज्ञान योग
हालांकि, इनके बीच कि भिन्नता चिंतन योग्य नहीं, क्योंकि, इन सभी ध्यानयोग अभ्यासो को का अंतिम लक्ष्य एक है – पूर्ण सजगता, स्वतंत्रता, आध्यात्मिकता
ये एक दूसरे से भिन्न है अपने प्रयास किए जाने वाले तरीकों से है जो इन्हें अलग बनाती है परंतु अंत में ये आपको और अधिक स्वस्थ, प्रसन्न और सजग बनाती हैं

हठयोग का अभ्यास कैसे करें? – hath yoga kaise kare

हठयोग का अभ्यास करने के लिए आपको आसनों को प्राणायाम और स्वांस प्रवास से मिलाना होगा,
सबसे पहले यह सुनिश्चित करें, शारीरिक रूप से आप आरामदायक आसन में हैं जिसके पश्चात कुछ मुद्राओं का अभ्यास करें तथा स्वांस प्रवास के साथ ध्यानयोग अभ्यास में आगे बढ़े…
स्वांस प्रवास का अभ्यास
सांस छोड़ना और लेना किसी भी ध्यानयोग (योगाभ्यास) में महत्वशाली होता हैं बल्कि, स्वांस लेने और स्वांस छोड़ने के बीच की स्थिरता भी बहुत बदलाव लाती है।
यहां तक कि स्वंसो की गति का भी अपना अलग महत्व होता है, चिंता ना करें…! आपको हर चीज सटीकता से करने की जरूरत नहीं, बस इस बात का ख्याल रखें आप ध्यानपूर्वक इसका अभ्यास कर रहे हो।
आसन
हालांकि, आसन मात्र एक शारीरिक मुद्रा है इसके बावजूद आसन स्वांस प्रवास के भांति ही महत्वशाली होता है। आप ध्यानयोग के लाभों को केवल आसनों के बदलाव मात्र से परिवर्तित कर सकते हैं। जो आपको अभ्यास के अंत में पता चलने लगेगा, अभी आप एक बेहतर शुरुआत ये कर सकते हैं पीठ सीधी रखें और कंधे रिलैक्सड
ध्यान
शायद आपने सुना होगा, ऐसा कहा जाता है ध्यान और योग एक दूसरे को पूर्ण करते हैं। इसलिए यदि आप इन दोनों में किसी एक का अभ्यास करने जा रहे हैं तो दोनों का अभ्यास करें:
हालांकि, यदि आप चाहे तो ध्यान अथवा योग किसी एक का भी अभ्यास कर सकते हैं बेहतर दोनों को करने में हैं, इसलिए आप उसे चुने जों आपके लिए ज्यादा बेहतर है योगा और मेडिटेशन

हठयोग के लाभ – benefits of hathyoga

सामान्यत: किए जाने वाले कसरतो की तुलना में हठयोग के लाभ चमत्कारीक हैं शुरुआत में आपको इसका एक लाभ देखने अथवा महसूस करने में भी समय लगेगा जो इसे अभ्यास करने में और कठिन बना देता है
लेकिन जब आप इसकी शुरुआत कर जाए, तो बड़े बदलावो के लिए तैयार हो जाए जो जल्दी आपको दिखने लगेगें, जैसे –
स्थिर रहने की क्षमता विकसित होगी
स्थिरता मुश्किलों का सामना करने से आती है, हालांकि, ध्यानयोग का अभ्यास आपकी इस क्षमता में विकास लेकर आता है क्रमानुसार दृंड आसनों का अभ्यास आपको मजबूती देता है।
आपको स्वस्थ बनाएगा 
जैसे कि आप जानते ही होंगे, योग और मेडिटेशन में शारीरिक हरकत की आवश्यक्ता पड़ती ही है। हां… मेडिटेशन में इसकी आवश्यकता नहीं होती, मगर कुछ मात्रा में आवश्यक है। और ये बात तो लगभग सभी जानते हैं सामान्य जीवन में शारीरिक हरकत कितना स्वास्थ्य लाभ पहुंचाता है।
इम्युनिटी बढ़ती है
आजकल की इस व्यस्त भरे जीवन में जिम्मेदारियों के बीच हमारी इम्युनिटी घटते जा रही है। एक हेल्थी लाइफस्टाइल के लिए अच्छी इम्युनिटी का होना जरूरी होता है। योग और मेडिटेशन करना रोज आपको हेल्दी और मजबूत बनाता हैं।

हठयोग की कमियां – limitations of hathyoga

अगर सत्य है तो असत्य भी वास्तविक हैं। ठीक इसी प्रकार, जिस तरह ध्यानयोग (योग और मेडिटेशन) अभ्यास से इतने फायदे होते हैं हम ये कह सकते हैं कहीं ना कहीं इसमें भी कुछ कमियां होगी हि
सीधेतौर पर तो ये आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा, लेकिन यदि कोई व्यक्ति इसे गलत तरीके से अभ्यास करें तो इसका परिणाम उचित नहीं होगा
इन सबके बावजूद, हठयोग में बहुत से कठिन आसन भी है जिन्हें यदि सही से न किया जाए, संभवतः आप खुद को छतिग्रस्त कर बैठेगें, इसलिए इसका भी ध्यान रखें।

अष्टांग योग – Eight limbs of yoga

महर्षि पतंजलि अष्टांगयोग के जनक माने जाते हैं। संस्कृत भाषा में लिखी गई ये प्राचीन पुस्तक है जिसमें 196 सूत्रों के माध्यम से ध्यानयोग के अभ्यास (योग और मेडिटेशन) का संपूर्ण वर्णन किया गया हैं
इनमें से 2 सूत्र निर्देशन के लिए लिखें गए हैं तथा शेष 194 हस्तलिखित सूत्र वर्तमान में अभ्यास किए जाने वाले ध्यानयोग (अष्टांग योग) को पूर्ण करते हैं।

अष्टांग योग क्या है – ashtang yoga kya hai

अष्टांग योग क्रमानुसार अभ्यास किए जाने वाली ध्यानयोग की एक पद्धिती है…!
अष्टांग योग में 8 अंग है जहां आठ स्तरो में योग और मेडिटेशन (ध्यानयोग) का अभ्यास किया जाता है। ये आठ स्तर हैं – यम, नियम, प्रत्याहार, प्राणायम, आसन, धारणा, ध्यान व समाधि
यहां अभ्यासी को क्रमानुसार सभी स्तरो को पार करना होता है तभी वह उच्च स्तर की प्राप्ति कर पाता है। चलिए जानते हैं कैसे आप इसका अभ्यास कर सकते हैं
हालांकि, यदि आप आध्यात्मिक नहीं भी है और ध्यानयोग (योग और मेडिटेशन) अभ्यास की शुरुआत शुरुआत कर रहे थे, क्युकी अपने इसके होने वाले फायदों के बारे में सुना या पढ़ा होगा
अच्छी बात ये है आपको अष्टांग योग के सभी स्तरों का अभ्यास करने की आवश्यकता नहीं, हालांकि, यदि आप चाहे तो कर सकते हैं। अष्टांग योग के सभी स्तर उच्च स्तर की प्राप्ति के लिए बने हैं
आध्यात्मिक तौर पर यदि आप अभ्यास नहीं करना चाहते तो आप उसका अभ्यास करें जो आपके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है तथा समय के साथ आप बेहतर होते जाएंगे

लेकिन अष्टांग योग के आठ स्तरो को आपको समझना होगा

यम : यम अष्टांग योग का पहला अंग है मतलब स्वयं पर निंत्रण, इसका अभ्यास करने वाला व्यक्ति खुद में संयम की प्राप्ती करता हैं। मन वचन, कर्म से ना वह दूसरों को हानि पहुंचाता ना स्वयं को, यम के भी कुछ जरूरी अंग है जो अभ्यासी को पालन करने होते है –
पांच यम : ————-
  1. सत्य
  2. अहिंसा
  3. लोभ ना करना
  4. ब्रह्मचर्य
  5. अपरिहार्य
नियम : नियम अष्टांग योग का दूसरा अंग है जहां मनुष्य स्थायीत्व की प्राप्ति करता है। नियमों का पालन भी निश्चित है यम की तरह नियम भी महत्वशाली है परंतु यह समाज की अपेक्षा स्वयं पर अधिक केंद्रित होता हैं।
पांच नियम : ————-
  1. पवित्रता
  2. संतोष
  3. अनुशासन
  4. ज्ञानार्जन
  5. सर्वोच्च चेतना के साथ जुड़ाव
आसन : योगाभ्यास, आसन अष्टांग योग का तीसरा अंग है। जहां व्यक्ति योगाभ्यास से शरीर को शुद्ध बनता हैं। योगासनों का अभ्यास मनुष्य की चेतना खोल उसे वास्तविकता देखने को प्रेरित करता है। वर्तमान समय में आसन विभिन्न मुद्राओं के रूप में अभ्यास किए जाते है
प्राणायाम : अष्टांग योग का चौथा अंग प्राणायाम है स्वंसो के माध्यम से प्राण ऊर्जा का संचालन करना, प्राणायाम के द्वारा शरीर में मौजूद नाड़ीयो की शुद्धि कि जाती है। प्राणायाम का अभ्यास ना सिर्फ शरीर में ऊर्जा का निर्वाह करती बल्कि उसका संचालन भी करती है। जो हमे स्वास्थ और ऊर्जावान बनाता है
प्रत्याहार : प्रत्याहार के अभ्यास से मन को इंद्रियों के वश से दूर किया जाता है प्रत्याहार अष्टांग योग का पांचवा अंग है। जहां मनुष्य सांसारिक वस्तुओं के प्रति अपने लगावो को छोड़, मन और वचन से खुद को शुद्ध बनता है जिससे उच्च चेतना का विकास हो सकें
धारणा : धारणा ध्यान की वह स्थिति है जहां व्यक्ति का मन एक जगह केन्द्रित हो जाता है अधिकांशत: स्वांसो पर, यह अष्टांग योग का छठवा अंग है जहां मन को स्थिर रहना सिखाया जाता हैं जिससे यह ध्यनाभ्यास के लिए तैयार हो सकें
ध्यान : ध्यान अर्थात जुड़ना, ध्यान अष्टांग योग का अठवा अंग है। जहां व्यक्ति का मन सभी विकारों से दूर हो जाता हैं और अपने अंतर में ही लीन हो जाता है।
समाधि : समाधि का अर्थ है सम्पूर्ण, पूर्ण चेतना, यह अष्टांग योग का आठवा अंग है समाधि की अवस्था में मनुष्य परमचैतन्य में लीन हो चुका होता है उसे अपने शारीरिकता का भी बोध नहीं रहता, तथा यही से मनुष्य में सभी कल्पनाओं की समाप्ति होती है

Dhyanlok के कुछ शब्द
ध्यानयोग : ध्यान और मेडिटेशन अलग नहीं है बल्की दोनों एक दूसरे के अंग है जो एक दूसरे को पूर्ण करते है। आशा है आपको ध्यान योग (dhyan yoga ) क्या हैं पता चल गया होगा यदि आपको meditation या किसी प्रकार का संदेह हो तो उसे पूछ सकते है। 
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Namaskar dosto! I'm the writer of this blog, I've fine knowledge on Yoga and Meditation, I like to spread positivity through my words.

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