सामान्यजनों की मानसिकता इस बात पर टिकी है यदि उन्होंने कुछ देर शांत बैठ लिया अर्थात उन्होने ध्यान ( meditation ) कर लिया तथापि वे इसमें निहित लाभ प्राप्ति के भागीदार हो गए हैं।
हां… यह सत्य है, यदि आपके पास ध्यान के लिए पर्याप्त समय नहीं रहता, किसी विशेष ध्यान में बैठे बिना भी आप शांत रहकर इसका अभ्यास कर सकते हैं।
ध्यान के अदभुत चमत्कारों के बीच इसके प्रति आकर्षित होना सामान्य है। परंतु ध्यान की कभी भी अनेको अनेक विधियां हैं जिन्हें ध्यान करने के नियम स्वरुप अभ्यासी को करने रहते है।
ध्यान की अवस्था अपने आपमें जागृति है जीसे प्राप्त करने के लिए मनुष्य भूत, भविष्य और कल्पना जगत से दूर हटता तथा वर्तमान में सजग बन जाता है। तथा भटकते मन पर भी नियंत्रण पा लेता हैं।
ध्यान करने के नियम अपनाना अभ्यासी के लिए महत्वपूर्ण है। यद्यपि बिना इसके गहराई से ध्यान नहीं किया जा सकता एवं अनेकों कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है। इसलिए ध्यान करने के नियम आवश्यक है।
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ध्यान में नियमों का महत्व | importance of rules in meditation
नियम या कानून एक सदृश्य और शांत समाज के महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि बिना इसके अभद्रता और अशांति सार्थक रूप से फैल जाती है। अर्थात परिणाम स्वरूप ध्यान में नियमो कि अवहेलना इसकी महत्वता को खत्म कर देती है।
नियमों का होना ध्यान में इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसे लगातार अभ्यास की जरूरत पड़ती तथा बिना संपूर्ण समर्पण किए गए प्रयासों से मनचाहे परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती।
इसलिए ना सिर्फ आपको नियमों को अपनाना चाहिए अतएव कठोरता से पालन भी करना चाहिए –
योगासन पूर्व नियम | rules before yoga
- योगासन के पूर्व शौच, स्नान आदि से निवृत हो जाना चाहिए।
- प्रातकाल योगासन करना लाभदायक रहता
- योगासन के तुरंत बाद स्नान नहीं करना चाहिए साथ ही पसीने को पंखे से सुखाय, तापमान सामान्य होने पर ही स्नान करें।
- योगासन करने के आधे घंटे पश्चात दूध, दलिया, अंकुरित अनाज थोड़ी मात्रा में जरूर लेना चाहिए
- आसनों का अभ्यास एकांत व धूल मिट्टी और दुआ रहीत स्थान में किया जाना चाहिए। इसकेलिए घर की छत, पार्क, नदी के किनारे ऐसे ही खुले स्थानों का चुनाव करें जहां शुद्ध हवा चल रही हो।
- अत्यधिक ठंड होने पर योगासन खुले कमरे में करें।
- आसन करते समय शरीर पर निम्न वस्त्र रखने चाहिए।
- समतल भूमि पर गर्म कंबल अथवा मोटीचादर बिछा कर आसन करें। खुली भूमि में आसन करने से शरीर में उत्पन्न होने वाली विद्युत ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
- मुंह के बजाय नाक से लेना चाहिए
- आसन करते वक्त शरीर के साथ जोर जबरदस्ती बिल्कुल ना करें, आरामदायक रहे
- आसन के पूर्व थोड़ा ताजा जल पीना लाभकारी रहता।
- आसन की स्थिति में स्वास – प्रवास का विशेष ध्यान रखें
- आसन करते समय जिस स्थान पर खिंचाव पड़ रहा हो, अथवा कष्ट-पीड़ा होने की अवस्था में अभ्यास तुरंत रोक दें।
- आसन जितने समय तक आसानी से कर सके उतना ही करें।
- आसन नियमित तथा एकाग्रचित्त होकर प्रसन्न मुद्रा में करें।
- आसन में प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए
- शरीर में कमजोरी होने पर निरीक्षक के निर्देश से योगासन करें
भोजन के 4 घंटे पश्चात ही योग किया जाना चाहिए।
अष्टांग योग में नियमों का महत्व
योग करना मनुष्य के मन, प्राण और शरीर को शुद्ध बनता हैं जिससे आत्मशक्ति विकसित होती है। तथा आत्मज्ञान की प्राप्ति भी होती है।
इसलिए इसे हमारे प्राचीन ऋषिमुनियो ने शरीर, मन और प्राण की शुद्धि के लिए अनेकों साधन बताएं है। जिसमें अष्टांग योग भी एक है – अष्टांग योग के अभ्यास से मनुष्य स्वयं को विकार रहित बनाता तथा आत्म शक्ति और आत्मज्ञान कि प्राप्ती भी करता है। अष्टांग योग में आठ अंग होते है जिनका अभ्यासी को क्रमाअनुसार पालन करना पड़ता है।
यम ( Yama )
यह हमें सामाजिक जीवन के प्रति शुद्ध बनाने में सहायता करता है। इसमें निहित है यदि कोई व्यक्ति इसका अभ्यास करें अर्थात – किसी को सताना नहीं, यातना नहीं देना, लोभ लालच भी नहीं करना, चोरी डकैती नहीं करनी, तथा कुछ भी ऐसा कार्य नहीं करना जिससे सामाजिक हानि हो
इसमें निहित पांच नियम
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय
- ब्रह्मचर्य
- अपरिग्रह
नियम ( Niyama )
यह सामाजिक ना होकर हमारे चरित्र को दृष्टिगोचर करता है क्योंकि जैसा आपका चरित्र होगा समाज में आपका व्यवहार भी होगा। यदि आपका चरित्र ठीक है तो समाज के आप श्रेष्ठ अंग बनते हैं। क्योंकि श्रेष्ठ समाज उत्तम व्यक्तियों से मिलकर बना होता है।
इसमें निहित पांच नियम
- शौच
- संतोष
- तप
- स्वाध्याय
- ईश्वरीय प्राणिधान
आसना ( Asana )
आसन मन की वह स्थिति है जहां आप सुख, शांति और स्थिर हो जाते हैं। शारीरिक विकास के लिए जिन योग क्रियाओं का अभ्यास किया जाता है उन्हें आसन कहते हैं। योग क्रियाओं में 84,000 आसान है लेकिन इनमें से 84 आसनों को वर्तमान में मुख्य रूप से अभ्यास किया जाता है।
प्राणायाम ( Pranayam )
प्राण + आयाम अर्थात प्राणायाम, वैसे तो प्राण विज्ञान व्यापक विषय है लेकिन इसके मुख्य अंग जिनका योगाभ्यास अथवा ध्यनाभ्यास में पालन जरुरी हैं –
- प्राणवायु संतुलित रूप से लेना
- नियमित रूप से गहरी तथा लंबी सांस लेना
- प्राण पर हमेशा ध्यान केंद्रित रखना
प्रत्याहार ( Pratayahara )
संसार में रहते हुए भी सांसारिकता और सांसारिक चीजों में लिप्त ना होना प्रत्याहार कहलाता हैं। अर्थात आपको उस कमल के समान बनना है जो पानी में तो रहता है लेकिन कभी गिला नहीं होता।
धारणा ( Dharna )
एकाग्रता कि वह स्थिति जहां हमारी चेतना किसी विशेष व्यक्ती, स्थान, या वस्तु पर केंद्रित हो जाए उस स्थिति को धारणा कहते हैं। धारणा जीवन में बेहद जरूरी है तथा सफलता पाने की कुंजी भी है।
ध्यान ( Dhyana)
चिंतन करना या स्मरण करना ध्यान की स्थिति है जहां ध्यान में विघ्न उत्पन्न करने के लिए कोई विशिष्ट वस्तु या विचार नहीं रहता। इस स्थिति में मनुष्य पूर्णतः जागृत अवस्था में रहता है।
समाधि ( Samadhi )
समाधि ध्यान की वह अवस्था है जहां हमारी चेतना अंतर में लग जाती है। यहां उसे ना अपने होने का आभास रहता और ना अपने सांसारिकता का वह पूर्ण रुप से स्वतंत्र हो जाता है। अर्थात ईश्वर में विलीन हो जाता है।
Dhyanlok के कुछ शब्द
ध्यान करने के नियम अपनाने का अर्थ यह नहीं आपको अपनी चेतना किंचित नियमों में बाध्य रखनी है। बल्कि नियमों को अपनाना हमें मन, वचन, और कर्मो से शुद्ध बनता हैं।
इसलिए ध्यान करने की नियमो का पालना आवश्यक रहता है।